Sunday 21 March 2010

दादी, माँ और पिता

28 जनवरी, '96 को 'हिन्दुस्तान' अखबार में प्रकाशित कविता.
लेखिका :सरोज कुमार वर्मा.


दादी

दादी है
तो सीखें हैं, कहानियां हैं.
दादी है
तो गंगा है, तुलसी है.
दादी है
तो जड़ें हैं. जमीन हैं.
दादी है
तो चर्चे हैं बाबा के.
दादी के होते
बाबा स्वर्गीय नहीं हो सकते.

माँ

माँ है
तो लोरी है, शगुन है,
माँ है
तो गीत हैं उत्सव है,
माँ है
तो मंदिर है, उत्सव है,
माँ है
तो मंदिर है मोक्ष है,
माँ है
तो मुमकिन है शहंशाह होना,
माँ के आँचल से बड़ा
दुनिया में कोई साम्राज्य नहीं.

पिता

पिता हैं
तो छतरी है माला है
पिता हैं
तो दरख़्त है, हिमालय है,
पिता हैं
तो नींद है, सपने हैं,
पिता हैं
तो सुविधा है नास्तिक होने की,
पिता के होते
इश्वर की प्रार्थना जरूरी नहीं.

Thursday 11 March 2010

ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है.
कि कैसा होता कि
खुद के रिश्तेदार इतने अच्छे होते
कि छुट्टियों में गाँव जाता 
और खुश होकर वापस आता,
न कि देकर ढेर सारे पैसे
किसी हिल स्टेशन में
चंद-दिन-चंद-रातों के लिए
"विजिट" करता.

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है.
कि कैसा होता कि
सत्तू, अजवायन, काला नमक, प्याज नीम्बू और पुदीने का बना सत्तू-ड्रिंक
हम दिल्ली में पीते
और एहसास भी नहीं होता कभी 
अपनी मिट्टी से अलग होने का  

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है.
कि कैसा होता कि
होता हर गाँव में एक साइबर कैफे
और चाट विंडो पर एक सन्देश भर भेज देने से हो जाता, 
किसी समस्या का निदान 

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है.
कि कैसा होता कि
सुबह सुबह मिलते गले 
लगाते नारे साथ-साथ 
अल्लाहो-अकबर,जय श्री राम के 
मुश्ताक और शीला की शादी में शरीक होते, 
मौलवी और पंडित 
और नाम रखते उनके बच्चे का "भारत"
और धर्म होता "भारतीय"
और अगली पीढी की जात होती : "भारतीय"

जानता हूँ कि दिन में सपने देख रहा हूँ मैं 
फिर भी,
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है

देखता हूँ सपने
कि हो रहे हैं संसद में शांति से सारे काम, 
कि अरसा हो गए हैं देखे ट्राफिक जाम, 
कि रुक रही है हर गाडी लाल बत्ती पर, 
कि लागू है ये नियम राष्ट्रपति पर, 
कि दाम बढते हैं उतने ही, जितनी आमदनी, 
कि मूल्य है किसी का, बस एक अठन्नी, 
कि बच्चे के दाखिले में प्रतिभा की ही दरकार है, 
कि हर भारतीय बोले कितनी अच्छी सरकार है,
दिल कहता है,
नहीं हो सकती इतनी सारी चीज़ें ,
एक साथ, 
लेकिन दिल ही तो है... 
तभी तो कभी कभी 
मेरे दिल में ख़याल आता है 
 

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Wednesday 3 March 2010

मेरे पप्पा


पप्पा,

पप्पा कहता था आपको,
अब भी कहता हूँ ,
आज भी प्रेरणा देते हैं, जब मुश्किल में होता हूँ,
उफनती नदियाँ,
जब सारा रस्ता छेक लेती हैं,
मुश्किल हो जाता जब,
एक डग भी भरना,
आज भी
आप ही देते हैं सहारा, और बंधाते हैं एक उम्मीद
हाँ पप्पा,
याद है मुझे अभी भी
आपकी वो बात
कि सबसे बड़ी पूंजी हैं
अनंत इच्छाशक्ति और अथक प्रयास,
विरासत में मिली पूंजी,
कैसे भूल सकता हूँ,
बस
इतना ही अंतर है,
कल
आप मेरी उंगलियाँ पकड़कर
आवाज दे कर
डांट कर
पुचकार कर
हंस कर,
संभाल लिया करते थे मेरी डगमगाती नाव को
और आज,
दे दी है आपने,
मेरे ही हाथों में पतवार,
और सोच में हैं सदा कि भांति,
हथेली पर ठुड्डी टिकाये 

पप्पा,
मैं जानता हूँ,
आप अभी भी नहीं बदले,
मंडराते हैं आज भी अपने बच्चों के गिर्द,
और करते हैं माजी की देखभाल,
हम कुछ भूल जाते तो
कर लेते हैं
आकर सपनों में बात 

पहले आप कहीं थे
अब हर-कहीं होकर,
तोड़ दी हैं आकार की बेड़ियाँ,
शायद अपने बच्चों के लिए ही तो,
कि काम आ पायें इस शरीर के बाद भी, 
तभी तो
मुश्किल वक्त में, जब टूट जाती है मेरी पतवार ,
लहरें डराती हैं,
धीरज तोडतीं हैं बार बार,
आप आते हैं
नाव के पाल की हवा बनकर,
दुखती रगों की दवा बनकर,

पप्पा,
सुखप्रद हो आपकी स्मृति,
चाहे कितनी भी
लेकिन,
आपका होना सार्थक करता
मेरी हरेक सफलता को आज,
जब
कमी नहीं हैं बधाईयों की,
लेने वाला कोई नहीं.
वो तो आप ही थे,
आप ही हैं

पप्पा,
आज भी कभी जब
माजी का सर दुखता है, और गर्म होता है,
याद करती हैं आपको,
कहती हैं,

तुम्हारे पप्पा पढते थे एक मंत्र
और फूंक देते थे उसी वक़्त,
ठीक हो जाती थी मैं बिलकुल,
पप्पा,
आजकल मैं पढता हूँ मंत्र,
नाम आपका लेकर,
माजी ठीक होती हैं आज भी
आपमें,
आपकी  आस्था में
एक शक्ति थी,
और है


कम से कम तो एक तसल्ली है फिर भी अब,
जायेंगे नहीं आप कही भी, मुझे छोड़कर, 
बने रहेंगे मेरी स्मृति में.........मेरे विस्मृत होने तक.