Sunday, 21 March 2010

दादी, माँ और पिता

28 जनवरी, '96 को 'हिन्दुस्तान' अखबार में प्रकाशित कविता.
लेखिका :सरोज कुमार वर्मा.


दादी

दादी है
तो सीखें हैं, कहानियां हैं.
दादी है
तो गंगा है, तुलसी है.
दादी है
तो जड़ें हैं. जमीन हैं.
दादी है
तो चर्चे हैं बाबा के.
दादी के होते
बाबा स्वर्गीय नहीं हो सकते.

माँ

माँ है
तो लोरी है, शगुन है,
माँ है
तो गीत हैं उत्सव है,
माँ है
तो मंदिर है, उत्सव है,
माँ है
तो मंदिर है मोक्ष है,
माँ है
तो मुमकिन है शहंशाह होना,
माँ के आँचल से बड़ा
दुनिया में कोई साम्राज्य नहीं.

पिता

पिता हैं
तो छतरी है माला है
पिता हैं
तो दरख़्त है, हिमालय है,
पिता हैं
तो नींद है, सपने हैं,
पिता हैं
तो सुविधा है नास्तिक होने की,
पिता के होते
इश्वर की प्रार्थना जरूरी नहीं.

1 comment:

Vyom said...

Loved it! Every word true to its meaning.