Thursday, 30 November 2017

Getting most of anything

Sadguru Mata Ji is here in NY/NJ today. We got opportunity to attend live satsang of 2 hours via Internet also.
One of the Vichars was by Rev Wahi Ji that triggered something in me. He was mentioning about Shahanshah Ji who once asked to devotees,"What a sadguru gives to desciple when He(Sadguru) is happy?"
Someone answered money and some said marriage, property, job or other sundry things of life. Then all requested Him to answer. Shahanshah Ji said,"When Sadguru is happy he gives opportunity to do sewa".
Hearing this I slipped into deep pondering and introspection with Q and A session inside.
How to know I have made my Guru happy?
Well, if  I am doing sewa, that means the Guru is happy with me.
Ok, How to make sure if I am doing sewa? Will I get any order from him verbally, in dream or through some saints?
May be or may be not. Sometimes yes, sometimes no.
...but I have to make sure I am always in Sewa. Not that sometimes I am in it and sometimes not, despite willing to do sewa.
Well, If I always look for commandments from outside then i am not at peace inside. If I am connected with my Guru from inside then outside commandments should not be necessary.
Ok, then I need to understand what is Sewa. Per definition anything that is done selflessly is called sewa. and Anything means, just 'A N Y T H I N G' literally. Ranging from duties assigned by Sadguru, saints, directly, indirectly, at bhawan, langar, kitchen, home, office, playground, shops, malls anywhere and anything: with just one condition - it is done without ANYTHING in return, just for the joy out of it.
So, if I am able to do this all the time, it means I am doing sewa - all the time and it ultimately means my Sadguru is happy with me, happily with me and that too - ALL THE TIME.
Side benefits: All benefits that we get from sewa: no tiredness, uplifted mood, karmic cleansing and many more.

Wednesday, 20 June 2012

ढाबे, राजमार्ग और ट्रक का धुआं.! : क्षितिज रॉय



कल रात को देहरादून से लौट रहा था. मेर्सदेस बेन्ज़ वाली बस थी...मन ही मन फूल के कुप्पा हो रहा था की आखिरकार चढ़ने का मौका तो मिला! चढ़ते ही बिसलेरी किउ बोतल थमा दी...पीछे वाली सीट पे बैठी मोहतरमा पांच मिनट से आंग्ल भाषा में बस वाले को ऐ सी नहीं चलाने के लिए गरिया रही थी.....आज कल पता नहीं क्यूँ मुझे अंग्रेजी भाषा कम और स्टेटस ज्यादा लगती है...जैसे भाषा नहीं कोई जाति हो....! कुछ मिनटों में बस निकल पड़ी....मैं भी सोने की कोशिश करने लगा....पीछे धाराप्रवाह अंग्रेजी स्पीकिंग क्लास चालू थी. शायद अब मोहतरमा 'इंडियन ओसन' और 'परिक्रमा' के बारे में अपनी राय रख रही थीं....इंडियन folk म्यूजिक के सिरमौर इन बैंड को दिल्ली ने पिछले पांच साल में मुझे भी सुना दिया है....! जबरदस्ती ही सही, पर सुना है. सच कहूँ तो इन बैंड्स से वैसे जुड़ ही नहीं पाया हूँ जैसे कुमार शानू, अलका याग्निक और नदीम श्रवण को सुनकर मंत्रमुग्ध होता था...राजा फिल्म में अंखिया मिलाती माधुरी को देख भागलपुर के शारदा सिनेमा में 6 साल की उम्र में जो पहला प्यार हुआ था उसकी गर्माहट अब पीवीआर प्रिया में दीपिका के ठुमकों में नहीं मिलता! कन्दिसा या desert rain ने अब तक नहीं रुलाया है, हाँ लता जी ने कई बार रुलाया है. सन २००८ में दिल्ली आने पर ' लिंकिन पार्क' का नाम सुना था तो लगा था जैसे पटना के 'हार्डिंग पार्क' का कोई भाई हो, बाद में सुनने लगा. मोबाइल के प्ले लिस्ट में अब भी मुन्नी और उमराव जान ही राज करती हैं....शकीरा और रिहाना समझ में ही नहीं आती.
खैर, जब बस चली, मेरी आँख नहीं लगी. बचपन याद आने लगा. बरसात की छुट्टी में नानी घर जाता था. मोतिहारी. यात्रा का रोमांच क्या होता है तब कोई पूछता तो बताता...रोंगटे खड़े रहते थे....हर कुछ नया लगता था....रांची में बस अड्डा खादगढ़ा में होता था ..अब भी है....सच में वहां इतना कीचड़ होता था की किसान खाद बना ले उससे! रिक्शे से उतारते ही अपनी बस खोजने लगता था..वो बुल्लू वाली होगी शायद...नहीं ये लाल वाली है....अरे भक...इ ता उज्जर है..! बस के अगले शीशे पे लगी भुक्भुकिया लाइट को मिनटों देखता रहता था.....पापा आदतन डाँटते रहते थे...देखिये बकलोल कीचड़ में खड़ा है...अरे निकालो वहां से बुरबक! निकल तो जाता था पर निगाहें 'अमर ज्योति' की भुकभुकाती ज्योति से हटती ही नहीं थी.....लाल का पीला हो के हरियर हो जाना कम ही देखा था तब...! बस में घुसते ही बहन से झोंटा-झोंटी होना आम था तब...कारण होता था खिड़की का आधिपत्य! हमको उलटी होता है....वो कहती थी....हमको भी..मैं चिल्लाता था....पीछे से माँ चिल्लाती थी...अरे बईठोगे पहले....बारी-बारी से बैठ लेना न....! हम कहाँ मानते थे...नोच लेते थे...फिर सुप्रीमो पिताश्री आके घुर देते थे...पापा से डरते थे हमलोग.....!'बैठो तुम हजारीबाग तक..हम वहां से बैठ लेंगे', मैं बड़ा था लिहाज़ा किनारे आजाता था.
आज इस बस में खिड़की वाली सीट मिली है..पर खिड़की पे बैठ के मजा नहीं आ रहा है..! तब खिड़की सम्मोहित कर देती थी....अँधेरे में कुछ दिखता नहीं था पर घंटों झांकता रहता था...बच्क्ग्रौंद में लता जी 'वादा ना तोड़' की गुहार लगाती थी..और मैं सोचता रहता था की 'राजा' फिल्म की माधुरी मुझसे ये कह रही है....! लता जी और हिंदी गानों से मेरी दिल्लगी शायद तभी शुरू हुई थी..! रात के अँधेरे में रजौली, नवादा, बख्तियारपुर, बाढ़, मोकामा...गंगा जी वाला राजेंदर पुल सब याद रखता था....सब सो जाते थे..सिर्फ मैं और वो खलासी जागते थे..!
सच मानिए मैंने अपने प्रारंभिक जीवन में पहला करियर खलासी का चुना था......जिस शान से वो मुह में तिरंगे की पीक दबाये..और कान में लिक्खो फेक्को पेन दबाये दरवाजे पे खड़ा हो के आस -पास के राहगीरों को दुतकारता था.......सटले तो गेल्ले बेट्टा.....ये सुन कर उस रात मैं खलासी बनने की कसम खा लेता था! शुक्र है की कभी अपने शिक्षक पिता के सामने इस रहस्य का रहस्योद्घाटन नहीं किया....भगवान् जाने क्या होता!
इस वोल्वो में खलासी की जरुरत ही नहीं है....! ना कोई गीत है न संगीत...बस ऐ सी के भनभनाने और पिछली सीट पे बैठी मोहतरमा के अपने पुरुष मित्र के साथ अंग्रेजी में चहचहाने की आवाज़ है....कर्कश है! मेरी अमर ज्योति का ड्राईवर हज़रिबघ पहुँचते ही मिथुन चक्रवर्ती को चला देता था.....कोई बेनाम सा टीवी सेट हुआ करता था पर आधे लोग ऊँकडू हो के बैठ जाते थे..अरे भाई विडियो कोच का भाडा दिए हैं..फिल्लिमा कैसे नहीं देखेंगे! फिलिम निहायती घटिया जरुर होती थी पर तब वही प्यारी लगती थी.....माँ के लाख डांटने पर भी सोते नहीं थे....फिर ढाबा आजाता था. फिलिम बंद हो जाति थी..और मैं उतरने के लिए बेताब.
ढाबा अमूमन नवादा या नालंदा के पास होता था...! उजले रंग का मरकरी लटकता रहता था जिसके उजले प्रकाश में भिनभिनाती मक्खियाँ दूर से ही दिख जाती थीं! ममता, सुनीता या आम्रपाली के नाम से होते थे ये ढाबे. नारंगी रंग से पुती दिवार पर काले रंग से लिखा होता था.....'ममता ढाबा, बाईपास NH ३४, नवादा, बिहार. यहाँ नाश्ते और भोजन का उत्तम प्रबंध है!' उसी रूट की कुछ और बसें आकर रुकी होती थी....भानु, कृष्णा रथ, विजय रथ , धरम रथ....भांति भांति के रथ होते थे..मैं मन ही मन सोचता था पापा ने फलां रथ में टिकेट क्यूँ नहीं कटवाया! उस बस का भुक्भुकिया तगड़ा है, उसमे गाना जोर से बजाया है...!!
माँ घर से पूरी भुजिया आचार लाती थी...बोलती थी की ढाबा का खाना अच्छा नहीं होता...हम जिद पे अड़ जाते...नहीं ड्राईवर साहेब जो खा रहे हैं वहीँ खाएंगे.......रोटी, तरका, आमलेट और गोटा प्याज ! ढाबा बदलाव था, नयापन था. वही पहली बार अपनी बस के ड्राईवर को शीशे की ग्लास में कुछ काला-लाल सा पीते देखा था,पापा से प्रश्नोत्तर किया तो झिडकी मिली थी ...'बित्ता भर का हुआ नहीं की CID बनते फिरता है..! पापा पास वाले पान दुकान में पान खाने जाते तो हम भी पीछे हो लेते थे.....उस समय मोर्टन बिकती थी..लोगे?, पापा पहुचते थे.....मेरा ध्यान पापा की पान पर होता था ....मोर्टन तो कभी बादो में खा लेंगे....सकुचा कर देखता तो पापा समझ जाते....'एक ठो छोटका मिट्ठा पट्टी लगा दो जी'......पापा पे प्यार आ जाता था. बड़ा होने की गफलत में पान चबाता बस में चढ़ता तो खलासी से निगाहें मिलाता था....अब हमहूँ तुमरे जैसे लग रहे हैं..! माँ गुस्साती थी....तो लगता माँ सच में लड़की ही हैं.....और हम लड़का!! लगता था माँ फ़िज़ूल में बात-बात में दर जाती है! बस का इंजन जैसे ही खुलता मेरी निगाहें पापा को खोजने लगती थीं....कहीं ड्राईवर साहेब छोड़ तो नहीं देंगे पप्पा को...मैं घबराता..फिर धकियाते लोगों के बीच से जब पापा प्रकट होते तो सब कुछ भूल कर फिर खिड़की से बहार देखने लगता था! ट्रक के धुंए की महक भी तब ही सूंघी थी....राजमार्ग से मुहब्बत भी तभी हुई थी!
इस वोल्वो में बाहर से हवा नहीं आती है.....उस अमर ज्योति में मैं पूरी ताकत से शीशा सरकाता था...वो हवा बड़ी ठंडी लगती थी....बंद शीशों से जिंदगी नहीं दिखती, हाँ खुद की परछाई जरूर दिखती है! रूरकी के पास का यह ढाबा,दरअसल ढाबा नहीं ढाबे की भोंडी, पूंजीवादी नक़ल है. यहाँ खटिया तो है पर वो खालिस भदेस महक गायब है....ट्रक का वो धुआं गायब है, पान वाला तो है पर वो पापा का दर, वो पहले पान की ख़ुशी नहीं है बस ड्राईवर आज भी उस काली चीज़ को शीशे के ग्लास में पी रहा होगा पर मैं अब बित्ते भर का CID नहीं रहा!! मेरी भूख न जाने क्यूँ मर सी गयी है! मैं सिगरेट लेने के लिए बढ़ता हूँ. अपनी बस की खिड़की के नीचे खड़ा दो कश खींचे ही थे की मेरी आगे वाली सीट पे बैठी बच्ची मुझे दिख गयी...! मैंने भी बचपन में कई बार 'अमर ज्योति' की खिड़की से सिगरेट पीते लोगों को देखा था....मुझे वे अजीब लगते थे....डर भी लगता था.....! मैं बच्ची को देखता हूँ....एक अपराधबोध से ग्रस्त हो सिगरेट फ़ेंक देता हूँ....फिर अन्दर आ के बैठ जाता हूँ..! मोहतरमा अब भी चालू है....अब उनकी अंग्रेजी मुखारविंद से 'व्हाट द फक्क' सुन के मुह से 'भक्क' निकल जाता है.....शुक्र है उत्तराखंड में भक्क समझने वाले कम ही हैं, मोहतरमा को तो मुह पे 'लोल' भी बोल देंगे तो समझेंगी की फसबूकिया 'लोल' बोल रहे हैं!
बस फिर से चल पड़ी है....पापा से मिले उस मीठे पान की खुसबू राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ३४ के किसी मोड़ पे खो गयी हैं. सुबह सुबह मैं डेल्ही में होऊंगा जहाँ कोई मेरा इंतज़ार नहीं कर रहा होगा, अमर ज्योति जब मोतिहारी पहुँचती थी तो मामा, मौसी और नाना खड़े मिलते थे!!
अब दिल्ली में प्रवासी छात्र की तरह से रहते हुए पाँच साल होने को आये हैं, भतेरे वाद, भतेरे ब्रांड्स, भतेरे व्यक्तित्वों से पाला पड़ा है....पर न जाने क्यूँ मुखर्जी नगर की सड़कों पे चलते चलते आज भी अपना मुस्स्लापुर और महेन्द्रू खोजता फिरता हूँ, इ-पोड के प्लेलिस्ट में भले ही कितने ग्रीन डेस और इंडियन ओसन पड़े रहें रिक्शे वाले के चायनीज़ मोबाइल में बजते छठ गीत को सुनकर आज भी आँखे नाम हो जाती है! इस भागती-मारती-बौराई दिल्ली के साथ चल तो रहा हूँ पर मेरा पटना, मेरा भागलपुर, वो राजमार्ग, वो ढाबा, वो मक्खियाँ, वो मेरा राजा की माधुरी के साथ रोमांस है की अब भी पीछा नहीं छोडता...........और अब मैं चाहता भी नहीं !!

Monday, 30 August 2010

Mohanji's Answers to my Questions



Question 1. We all take births to fulfill some purpose. How to know the purpose of the present Life?

Ans: Purpose is not something like being a Doctor or Engineer or a millionaire in the lifetime. The life's purpose is experiencing different colors of it. This experience could be had in any form, at any place during any stage of life no matter whether we are a student, a teacher, a boy, a girl, being in Russia or in a slum or in Himalayas. The crux of the matter is 'experiencing it'. That's all.
Now how to know the purpose of this life?
Whenever you want to check this out, just stop for the moment and ask yourself what are you experiencing in this very moment, with whatever you have, doing whatever in hand with whoever you are and being wherever you are RIGHT NOW.
You might be waiting for someone in the queue or at a bus stop for a long time. Then the purpose of your life at this moment of time was to learn patience.
Similarly you might be writing your experience you had in Mohanji's presence. In this case, your purpose at this moment of your life is to spread the words that you feel are good for others feeling connected to mankind as a whole, thinking you'll be benefited ultimately if mankind is benefited.
In this way, life's purpose is defined in moment-by-moment basis and not by achieving some money, power or designation. It is just to experience the colors of life in every moment.
Question 2. How to know whether the task I'm currently doing serves to my Life's purpose?
Ans: When a purpose is fulfilled we feel immensely blessed and filled with joy. Therefore the real testing criteria would be to see if you are happy, satisfied and feeling blessed while doing the job currently at your disposal. There could be some task that might not be giving you this but still it could be supporting you in doing some other task which gives you real satisfaction. For example I might be working in a company doing things I may not be enjoying. But it might be giving me enough time and money to do some other enjoying and satisfying stuff. Therefore the first job is serving my life's purpose indirectly and second job is serving directly.
Question 3. Most of the time in our lives we have to choose among multiple options available. How to know that the option I've chosen is governed by my previous karmas or out of free will?
Ans: When we are given something by previous karmas we call it our destiny. So here we would be talking about when do we do something out of destiny and when we do anything out of our own free will. The time, place and situation we are in at any given point of time is our destiny. When we exercise our choice to choose between available options we do it out of free will.
 
 3(a) yesterday I had the option to choose whether I would come to this congregation and that is why I'm here now. Therefore is it not because of my free will I'm here?
  Ans: What was my Free will yesterday is my destiny today. Yesterday my destiny was to feel good in Mohanji's presence so out of free will I decided to come again. Today my destiny is that I'm here again between 4 to 6 pm. Now whatever I do with this opportunity is again my free will at this point of time. So we see that we are constantly weaving the web of our own destiny every moment by exercising our free will.

Tuesday, 27 April 2010

जिंदगी तुझे देखा है हमने

जिंदगी तुझे देखा है हमने हर पल मुस्कुराते हुए,
कांपती रूह के मानिंद जज्बा-ए-जोश दिखाते हुए,
मुकद्दर की कोशिशों को अंगूठा दिखाते हुए,
रस्ते में मिला जो भी
उसको साथ बिठाते हुए,
ग़म-ए-खज़ाना को तहखाने में डाल कर,
शौक-मौज की फसल उगाते हुए,
पकड़ कर हरेक डाल जिन्दगी की
झूम के गाते हुए,

देखा जाए तो
ये ज़िंदगी है ही कितने दिनों की,
देखना मुश्किल है इसे,
बस गंवाते हुए,
ज़िंदगी,
तुझे देखा है हमने हर पल मुस्कुराते हुए
आती जाती हर शै को
हंसी से गुजारते हुए.
रंजो-ग़म की हर मुमकिन स्याही को मिटाते हुए

Sunday, 21 March 2010

दादी, माँ और पिता

28 जनवरी, '96 को 'हिन्दुस्तान' अखबार में प्रकाशित कविता.
लेखिका :सरोज कुमार वर्मा.


दादी

दादी है
तो सीखें हैं, कहानियां हैं.
दादी है
तो गंगा है, तुलसी है.
दादी है
तो जड़ें हैं. जमीन हैं.
दादी है
तो चर्चे हैं बाबा के.
दादी के होते
बाबा स्वर्गीय नहीं हो सकते.

माँ

माँ है
तो लोरी है, शगुन है,
माँ है
तो गीत हैं उत्सव है,
माँ है
तो मंदिर है, उत्सव है,
माँ है
तो मंदिर है मोक्ष है,
माँ है
तो मुमकिन है शहंशाह होना,
माँ के आँचल से बड़ा
दुनिया में कोई साम्राज्य नहीं.

पिता

पिता हैं
तो छतरी है माला है
पिता हैं
तो दरख़्त है, हिमालय है,
पिता हैं
तो नींद है, सपने हैं,
पिता हैं
तो सुविधा है नास्तिक होने की,
पिता के होते
इश्वर की प्रार्थना जरूरी नहीं.

Thursday, 11 March 2010

ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है.
कि कैसा होता कि
खुद के रिश्तेदार इतने अच्छे होते
कि छुट्टियों में गाँव जाता 
और खुश होकर वापस आता,
न कि देकर ढेर सारे पैसे
किसी हिल स्टेशन में
चंद-दिन-चंद-रातों के लिए
"विजिट" करता.

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है.
कि कैसा होता कि
सत्तू, अजवायन, काला नमक, प्याज नीम्बू और पुदीने का बना सत्तू-ड्रिंक
हम दिल्ली में पीते
और एहसास भी नहीं होता कभी 
अपनी मिट्टी से अलग होने का  

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है.
कि कैसा होता कि
होता हर गाँव में एक साइबर कैफे
और चाट विंडो पर एक सन्देश भर भेज देने से हो जाता, 
किसी समस्या का निदान 

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है.
कि कैसा होता कि
सुबह सुबह मिलते गले 
लगाते नारे साथ-साथ 
अल्लाहो-अकबर,जय श्री राम के 
मुश्ताक और शीला की शादी में शरीक होते, 
मौलवी और पंडित 
और नाम रखते उनके बच्चे का "भारत"
और धर्म होता "भारतीय"
और अगली पीढी की जात होती : "भारतीय"

जानता हूँ कि दिन में सपने देख रहा हूँ मैं 
फिर भी,
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है

देखता हूँ सपने
कि हो रहे हैं संसद में शांति से सारे काम, 
कि अरसा हो गए हैं देखे ट्राफिक जाम, 
कि रुक रही है हर गाडी लाल बत्ती पर, 
कि लागू है ये नियम राष्ट्रपति पर, 
कि दाम बढते हैं उतने ही, जितनी आमदनी, 
कि मूल्य है किसी का, बस एक अठन्नी, 
कि बच्चे के दाखिले में प्रतिभा की ही दरकार है, 
कि हर भारतीय बोले कितनी अच्छी सरकार है,
दिल कहता है,
नहीं हो सकती इतनी सारी चीज़ें ,
एक साथ, 
लेकिन दिल ही तो है... 
तभी तो कभी कभी 
मेरे दिल में ख़याल आता है 
 

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Wednesday, 3 March 2010

मेरे पप्पा


पप्पा,

पप्पा कहता था आपको,
अब भी कहता हूँ ,
आज भी प्रेरणा देते हैं, जब मुश्किल में होता हूँ,
उफनती नदियाँ,
जब सारा रस्ता छेक लेती हैं,
मुश्किल हो जाता जब,
एक डग भी भरना,
आज भी
आप ही देते हैं सहारा, और बंधाते हैं एक उम्मीद
हाँ पप्पा,
याद है मुझे अभी भी
आपकी वो बात
कि सबसे बड़ी पूंजी हैं
अनंत इच्छाशक्ति और अथक प्रयास,
विरासत में मिली पूंजी,
कैसे भूल सकता हूँ,
बस
इतना ही अंतर है,
कल
आप मेरी उंगलियाँ पकड़कर
आवाज दे कर
डांट कर
पुचकार कर
हंस कर,
संभाल लिया करते थे मेरी डगमगाती नाव को
और आज,
दे दी है आपने,
मेरे ही हाथों में पतवार,
और सोच में हैं सदा कि भांति,
हथेली पर ठुड्डी टिकाये 

पप्पा,
मैं जानता हूँ,
आप अभी भी नहीं बदले,
मंडराते हैं आज भी अपने बच्चों के गिर्द,
और करते हैं माजी की देखभाल,
हम कुछ भूल जाते तो
कर लेते हैं
आकर सपनों में बात 

पहले आप कहीं थे
अब हर-कहीं होकर,
तोड़ दी हैं आकार की बेड़ियाँ,
शायद अपने बच्चों के लिए ही तो,
कि काम आ पायें इस शरीर के बाद भी, 
तभी तो
मुश्किल वक्त में, जब टूट जाती है मेरी पतवार ,
लहरें डराती हैं,
धीरज तोडतीं हैं बार बार,
आप आते हैं
नाव के पाल की हवा बनकर,
दुखती रगों की दवा बनकर,

पप्पा,
सुखप्रद हो आपकी स्मृति,
चाहे कितनी भी
लेकिन,
आपका होना सार्थक करता
मेरी हरेक सफलता को आज,
जब
कमी नहीं हैं बधाईयों की,
लेने वाला कोई नहीं.
वो तो आप ही थे,
आप ही हैं

पप्पा,
आज भी कभी जब
माजी का सर दुखता है, और गर्म होता है,
याद करती हैं आपको,
कहती हैं,

तुम्हारे पप्पा पढते थे एक मंत्र
और फूंक देते थे उसी वक़्त,
ठीक हो जाती थी मैं बिलकुल,
पप्पा,
आजकल मैं पढता हूँ मंत्र,
नाम आपका लेकर,
माजी ठीक होती हैं आज भी
आपमें,
आपकी  आस्था में
एक शक्ति थी,
और है


कम से कम तो एक तसल्ली है फिर भी अब,
जायेंगे नहीं आप कही भी, मुझे छोड़कर, 
बने रहेंगे मेरी स्मृति में.........मेरे विस्मृत होने तक.
 

Tuesday, 29 December 2009

बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर ?

When news channels and newspapers started shouting, candle-marches started showing up on busy landmarks I found my conscience choking. day by day. It had been condensing gradually. …and one day my friend Jyoti sent me an email. He was equally disturbed after knowing the developments of the case. His mail, sent to all of our friends, urged for partnership in initiating action against such incidents for the sake of our own conscience. Following is the excerpt of his mail:

"…………

ONLY PLEDGE that I do make, is, if I come to know of any child (less than 18 years of age) being molested, ever in my life, irrespective of offender's position in society, family, neighborhood, that person WILL be punished... no matter what!

I WILL MAKE SURE I AM A LITTLE BETTER...next time the punishment will be harsher and faster than what we saw in Ruchika case and also will make sure offender won't have smile on his face ever in life.

I offer 3 options to ev'one on this mailing list....

1.)EITHER YOU TAKE ACTION on your own

2.)WE ALL TAKE ACTION TOGETHER or

3.)LET ME KNOW, I 'LL TAKE ACTION

If you go for option 3, then, I NEED A FAVOUR, if you know of any such CONFIRMED incidents(where child sex offender is going unpunished and child is tormented continuously), JUST INFORM ME, I can make arrangement for best level of punishment(per law of land) for such offenders.

Neither myself nor anyone who informs about incident will ever be made public or known for the action(unless they want).

for GOD sake, don't sit silent....children are best gift God can grant...and someone molests them and nobody does anything...I am not sure what do we aim to achieve in life by killing own conscience even in the event of heineous crime of this degree.

Note of Caution: DO NOT provide the wrong information...make sure you confirm it solidly, as truth will be known during course of investigation and ANY act of misinformation will be detrimental for ev'one.

PLEASE let me know, if you are willing to get up and ready to act! It just takes a bit of courage, ev'thing else will follow... believe me! Look at Madhu and Anand Prakash, they had nothing in favour, still they have won……….”

I’ve collected the chronology of events in the Ruchika Girhotra molestation case and subsequent events from Internet. I have put my comments in Red just to see where lapses had occurred which ultimately amounted to such a shameful development of the case. If you ask me ultimate responsibility lies with :

  1. The Government which not only dropped cases against Rathore but promoted him several times,
  2. Then with Police department which lodged 11 car theft cases against Ruchika’s brother’s to harass the family at the behest of Rathore,
  3. Then with the CBI court which took 9 years to convict even after charge sheet was filed in its court.
  4. The school was also pressurised to expell Ruchika who was in the same batch as Rathore’s daughter.

CHRONOLOGY:

* Aug 12, 1990: Haryana Inspector General of Police (IGP) S.P.S. Rathore, also the Haryana Lawn Tennis Association president, molests 14-year-old budding tennis player Ruchika Girhotra in his office room.

* Aug 16, 1990- Complaint made to chief minister Hukam Singh and home secretary.

* Aug 17, 1990- Hukam Singh asks Director General of Police (DGP) R.R. Singh to investigate the matter.

* Aug 18, 1990 - Police registers Daily Development Report (DDR) against Rathore wide DDR no. 12. : First Crime when FIR was not Lodged

* Sep 3, 1990 - DGP R.R. Singh finds Rathore prima facie guilty, submits report. Recommends FIR in the matter. Later, new DGP R.K. Hooda and Home Secretary J.K. Duggal recommend departmental action and chargesheet against Rathore.

* March 12, 1991 - Home Minister Sampat Singh consents to the departmental action. Forwards it to Chief Minister Hukam Singh.

* March 13, 1991- Hukam Singh gives his consent to the proposal.

* March 22, 1991 - Om Parkash Chautala becomes new chief Minister of Haryana. Hukam Singh leaves the chief minister's post. Chautala remains chief minister for 14 days amid political turbulence and instability.

* April 6, 1991 - President's Rule is imposed in the state. Governor Dhanik Lal Mandal takes over.

* May 28, 1991 - Charge sheet approved against Rathore during governor's rule.

* July 23, 1991 - Bhajan Lal-led Congress government takes over. Remains chief minister till May 9, 1996, during which time most of the alleged atrocities on Ruchika's family took place. : Second Crime when Politicians showed their nexus with Police

* April 6, 1992 - FIR against Ashu, Ruchika's brother, for car theft registered wide FIR No. 39.

* June 30, 1992 - Matter for registering FIR against Rathore taken up and Haryana legal remembracer R.K. Nehru recommended immediate registration of FIR against Rathore.

* March 30, 1993- Another FIR is registered against Ashu for car theft, wide FIR No. 473.

* May 10, 1993 - One more FIR is registered against Ashu for car theft, wide FIR No. 57.

* June 12, 1993 - Yet another FIR is registered against Ashu for car theft, wide FIR No.96.

* July 30, 1993 - One more FIR is registered against Ashu for car theft, wide FIR No. 127.

* Sep 4, 1993 - Another FIR is registered against Ashu for car theft, wide FIR No. 147. All the cases were registered under section 379 IPC.

* Oct 23, 1993 - Ashu is illegally picked by the Haryana police and kept in illegal detention for almost two months. Eleven car theft cases were registered against him. :Eleven Crimes done by Police obviously to put pressure on Ruchika family for complaining against Rathore. Totalling 13 crimes.

* Dec 28, 1993 - Unable to cope with harassment imposed on her and her family, Ruchika commits suicide by consuming poison.: Fourteenth Crime by Rathore. Creating circumstances that forced Ruchika to suicide.

* Dec 29, 1993 - Ashu is released one day after Ruchika's suicide.

* April 1994 - The charges framed against Rathore dropped during Bhajan Lal's tenure, months after Ruchika died.: Fifteenth crime by BhajanLal govt.

* Nov 4, 1994 - Rathore promoted as Additional DGP by Bhajan Lal government. Sixteenth crime by BhajanLal govt.

* May 11, 1996 - Bansi Lal becomes Haryana chief minister. Remains chief minister till 23 July, 1999 during which period Rathore was promoted as DGP.: Seventeenth crime by BansiLal govt

* June 5, 1998 - Rathore suspended by Bansi Lal government in connection with a matter relating to a parole case regarding a detainee.

* Aug 21, 1998 - CBI probe is ordered in Ruchika molestation case by the Punjab and Haryana High Court.

* March 3, 1999 - Rathore is reinstated as Additional DGP by Bansi Lal government. Eighteenth crime by BansiLal govt

* July 23, 1999 - Om Parkash Chautala becomes chief minister.

* Sep 30, 1999 - Departmental enquiry exonerates Rathore in molestation case, he is promoted as DGP with effect from May 20, 1999. Ninteenth crime by Chautala govt

* Oct 10, 1999 - Rathore made Haryana's DGP (state police chief) by the Chautala government. Twentieth crime by Chautala govt

* Nov 16, 2000 - CBI files chargesheet against Rathore in Ruchika molestation case.

* Dec 5, 2000 - Rathore removed as Haryana DGP. Sent on leave.

* March, 2002 - Rathore retires from service.

* Dec 21, 2009 - CBI special court convicts Rathore in the Ruchika molestation case. Sentenced to six months imprisonment and fine of Rs.1,000.:TwentyFirst Crime by CBI court by taking 9 years from chargesheet filing till conviction.

Last updated on Dec 25th, 2009 at 17:42 pm IST

Source: --IANS

Therefore for me there were 21 crimes done by a nexus of Police, Judiciary and Politician. And Rathore was awarded six months imprisonment and fine of JUST Rs.1000.

Short Term Solution: Punish all the culprits and Punish really Hard.

Long term Solution: Moral khatam ho gaya hai bhai.Improve Moral of general public like one shown by Madhu and Anand Prakash.We should take care in imparting moral values in our children who will create and be part of system of future India. Teach them to be Kaabil and not to do anything for the sake of success. Competition is good but not at the cost that may leave you repenting for life.

Tuesday, 27 October 2009

Radio, TV …and Life

In my childhood, I used to listen radio.

it was such a wonderful world of melodious songs, poems, discussions and that boring news which was difficult to understand at that age. I glued to our old fashioned, big radio kept in a wooden box with holes to help sound come out of it. I recall somebody also told me that artists and singers and those children of Baal-Mandali all live in that radio. So whenever Bhaiya used to open that radio for repairing I used to wonder where they all had gone! Anyway, enjoyed that age-old radio for quite some years.

When I was 15 yrs old a tape recorder was bought in my home. After listening it in other people’s houses for some years I used to think that our boring radio gives us surprises in the form of songs. This tape-recorder is better than radio because I could know well in advance which song is going to play. In newly-bought tape-recorder I used to record voices of family members and myself and enjoyed that too quite a lot, especially putting that old radio in back on rack. I still remember some of the songs word by word I used to memorize by using ‘pause’ button, writing and rehearsing them. First such cassette was “Thanda Thanda Paani from Baba Sehgal. It was a Hindi Rap. Gradually time went by. Cassettes were changed and exchanged with friends and neighbors too. Slowly a feeling of boringness started creeping in me.

I had left listening radios. Tape recorder was monotonous. It was “predictable”.

Then, I learnt the importance of surprises in life. Living moment by moment adds interest to life. YES, Radio bounced back in my life. I started listening a new radio which was very tiny compared to older one. It had short wave catching capability. Now I had the privilege of listening to unpredictable. Though, initially, I thought too much of unpredictability would make me feel that I’m not free. I felt I could not ‘decide’ what I wanted to hear. But gradually I learnt the art of living in unpredictable world of radio. Channels would keep broadcasting what they are programmed for. If I do not like it it is me who needs to change the channel….. and this ended my dilemma of freedom.

YES, in life too all of us are free. World is not going to change for us. All sort of things were there much before we came on earth and they will remain here after we are gone. So it is our task to choose, to pick and not world’s task to give us what we like. Everything is on display. Pick and use. Simple.

Then came the world of the idiot box. The Television. I repeated the same cycle, though for shorter period, that I did with radio. I saw whatever programmes were being aired (no choice). Got bored.Then I saw movies by choice by picking CDs & DVDs. Got bored again by predictability. Stories were almost same. Be it cinema or serials. Now these days I’ve been enjoying Reality show named “Big Boss”. It is unpredictable. You can’t guess who’ll say what in next episode. Even the characters of the show don’t know what they’ll do with whom and what they will going to say next moment… and this mysticism generates curiosity. Same like our life.

Isn’t it full of wonder that we see the same thing everywhere? be it Radio or TV or People… because they are all made out of life.


Friday, 24 April 2009

World's Largest Reality Show

Come election time and everybody related to political parties seems engaged in worst possible tactics.
In last few months, I’ve been receiving some chain e-mails forwards stating personal or family related matters about leaders of different parties. Following the trend somebody forwarded story about Rahul gandhi being involved in some criminal cases.
When politicians have nothing to talk on national matters and they do not have guts to hold full view public debate on national issues they engage people in personal mud slinging. This news is one of them. I do not say Rahul Gandhi can not do these things but chances of these stories to be true are 50 percent in normal days and less than 50 percent during election days. Scoops and rumors have become the identity of our elections.
In US, if you want to fight an election you are not only expected to know the national issues at length but also required to offer solutions to them. Despite lobby politics prevailing there, only those having best solution to offer, wins.. Unfortunately, India lacks national character during elections.
Koi kisi ko salaa kehtaa hai, koi kisi ko jhappi aur pappi deta hai aur koi kisi ke family history ko uchaaltaa hai. Kabhi kabhi isi baat par breaking news ban jaati hai ki kaun asli maa hai; jisne bachche ko janm diyaa ya jisne hazaaron laakhon bachchon ko pyaar kiyaa, because politocians know we people has a taste for these issues and general election has become largest reality show of the world. US feels Taalibaan is threat and feels attacking on it is it’s duty without seeking permission from Pakistan . Talibaan is nearer to us but we have stopped ourselves entering into Pak and destroying the same threat.
Few days back, I was deeply hurt and shocked seeing all this that national development issues have gone. People will again select leaders on the basis of cast, money, muscle and alliances and for next 5 years cry on fate. Azmal Aamir kasaab is enjoying amidst z+++++++ security. He has been given 15 days time to respond to initial round of questions put up by Public prosecutors because he has demanded urdu versions of chargesheets. Govt machinery will prepare this for honourable Kasaab saheb who has killed 166 people and who was shown live firing at people watched by millions.
I think everybody is willing to accept the fact that whoever party our Prime Minister belongs if he is murdered by anybody he is enemy of India . But democracy is great and equally great is the freedom of speech that a person is openly saying that killer of our prime minister is his friend and no body has guts to stop him not even the own party of the killed PM. This is the level of politics in India . Can you think what would be my fate if I, an ordinary citizen, declare that all killers of Mumbai riot are my friend? But I’m sure no body can touch me if I support the ruling party.
So dear Vinay, gam na karo. ye sab hotaa hi rahtaa hai. As a country we are comfortable in digesting these incidents. Rahul Gandhi might have done it or might not have done it I have decided to vote for a leader who will bring back the lost glory of nation. For me Election time is nation time so I can not afford to think at personal or regional level. Gangrape karne walaa arrest hotaa hai ya nahin ye uske contacts per depend kartaa hai kanoon par nahin. So I don’t get surprised if Rahul is saved even if this news is true.

I feel sad that after Indira Gandhi we have not found any leader who can take decisions. I wish agar aaj wo jindaa hoti to Taaliban threat se nibatne ke liye pehle Pakistaan ko warning deti aur agar Pak kaam nahin kartaa to national interest mein self defence ki khatir attack kar dete. Taliban ko bhagakar Pakistaan mein democratic sarkaar banaakar fir waapas apni seema mein aa jaate. Ye sab kaam US ne Afgaan aur Iraq mein itni door hote hue kiya hai. Hum to itne najdeek hain aur Pak people are almost like our own people who had decided to stay in separate country.
Read this:
http://www.thenews. com.pk/daily_ detail.asp? id=172290